केमिकल डालकर बनाया जा रहा है गुड़ खाने से हो सकती लोगो की तबियत खराब नही हो रही कारवाई

(दिलीप चौकीकर संवाददाता आमला)

आमला ब्लाक में बड़े पैमाने पर गुड मिलों का संचालन, बाहरी लोग चला रहे गुड मिल, मुसाफिरी तक दर्ज नहीं कराते हैं
और नाबालिक लोगों से भी काम करवाया जाता है इन्हें सही दर भी नहीं मिल पाती जो यह नियम विरुद्ध है

गुड मिलों में नियमों की उड़ रही धज्जियां, प्रशासन मौन

आमला। ब्लॉक के आसपास गांवों में गुड़ मिलों की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही है। गुड़ फैक्ट्रियों से निकलने वाले धुएं से प्रदूषण बढ़ रहा है। जबकि दूसरी तरफ यूपी-बिहारी सहित अन्य प्रांतों से आए लोगों द्वारा इन गुड मिलों का संचालन किया जा रहा है, जो किसानों को लालच देकर गन्ना तो खरीद लेते है, लेकिन भुगतान किये बगैर ही भाग जाते है। पिछले कुछ सालों से किसानों को इसी तरह के नुकसान का सामना करना पड़ा है। लेकिन बाहरी प्रांत से आने वाले गुड मिल संचालकों का वैरीफिकेशन न तो पुलिस करती है और न ही प्रशासन अनुमति सहित अन्य दस्तावेजों की जांच करती है। जिसके कारण गुड मिल संचालक नियमों का खुलेआम उल्लंघन कर रहे है। गौरतलब रहे कि कोंडरखापा, जंबाड़ा, सोनतलई सहित अन्य गांवों में संचालित गुड फैक्टियों से निकलने वाले धुएं से पूरा क्षेत्र में घना कोहरा छाया दिखाई पडता है। इन फैक्टियों के आसपास रहने वाले लोग धुंए और दुर्गंध से परेशान है। गुड़ फैक्ट्री से प्रदूषण को रोकने के लिए कोई उपाय नहीं किए गए है। प्रशासन द्वारा भी गुड़ फैक्ट्रियों पर किसी प्रकार की कार्रवाई नहीं की जा रही है। गुड़ फैक्ट्री में धुंए निकलने के लिए बनाई गई चिमनी की ऊंचाई कम रहती है, जिसके कारण धुंआ आसपास प्रदूषण फैला रहा है।

गुड सफेद करने करते है केमिकल्स का उपयोग ………

कई गावों में बड़े पैमाने पर गुड मिल संचालन हो रहा है। गुड़ के रंग को निखारने और उसमें चमक लाने के लिए गन्ने के रस को जिस कडाई में पकाया जाता है। उसमें गुड मिल संचालक रसायनयुक्त पदार्थों और हाईड्रो पाऊउर का उपयोग करते है। इसमें खौलते गन्ने के रस में फैन निकलता है और गुड़ का रंग साफ हो जाता है। गुण कई साल तक बिना खराब हुए चलता है, परंतु इसमें हो रहे अपमिश्रण से स्थिति यह है कि अब गुड़ की गुणवत्ता चार पांच महीने की रह गई है। इसके बाद वह खराब हो जाता है। लेकिन औषधी एवं प्रशासन विभाग के फुड इंस्पेक्टर जांच तक नहीं करते है। यही कारण है कि गुड़ बनाने वाले धडल्ले से लोगों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक रसायनों का उपयोग कर रहे हंै।

थाने में मुसाफिरी तक नहीं है दर्ज ……....

यूपी-बिहार प्रांत से आकर गुड मिल का संचालन करने वाले लोगों की थाने में मुसाफिरी तक दर्ज नहीं है। यही वजह है कि जब यह लोग किसानों का भुगतान किये बगैर भाग जाते है तो पुलिस को भी इन्हें पकडऩे में काफी परेशानी होती है। क्योंकि पुलिस के पास उनका कोई रिकार्ड नहीं रहता है। जबकि बाहरी लोगों की आमला क्षेत्र में आमद लगातार बनी हुई है। ऐसे में शहर में शांति व्यवस्था और सुरक्षा को लेकर खतरा बना हुआ है। लेकिन पुलिस प्रशासन भी इस ओर ध्यान नहीं दे रहा है। जानकार बताते है कि बाहरी लोगों को यहां आने पर थाने में वेरिफिकेशन, मुसाफिरी दर्ज कराना अनिवार्य हैं।

इनका कहना है …………………

अगर ग्रामीण क्षेत्रों में गुड़ बनाने वाले कमर्शियल घाने या गुड़ मिल नियम से संचलित नही हो रहे तो इनकी जाच कराई जाएगी नियम विरुद्ध पाए जाने पर सम्बंधित पर वैधानिक कारवाई की जाएगी।

शैलेंद्र बडोनिया एसडीएम आमला

Satish Naik

Editor in Chief

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