मुल्ताई:(सैय्यद हमीद अली)
वो दिन अब हवा हो चुके हैं जब कि, चुनाव आता था,उस वक्त आम जनता अपने ही बीच से किसी योग्य और होनहार व्यक्ति को, चुनाव में खड़ा करती थी। वह उम्मीदवार जनता की पहली पसंद हुआ करता था। अपने नाम, सेवा भाव और साफ सुथरे चरित्र का व्यक्ति होने के नाते, वह व्यक्ति चुनाव जीत भी जाया करता था। परंतु वर्तमान परिवेश में चुनाव का अर्थ ही बदल चुका है ? अब चुनाव व्यक्तिगत व्यक्ति, ना जीत कर, पार्टीयों के नाम से उम्मीदवार चुनाव जीत रहे हैं । अगर उनकी पिछली जिंदगी मुड़कर देखी जाए तो वह,व्यक्ति किसी भी लायक नहीं पाया जाता ,,? परंतु वह पार्टियों को चंदा दे देता है, तो पार्टी उसे टिकिट भी देती हैं,और वह पार्टी के नाम से जीत भी जाता हैं। और इस तरह से जीते व्यक्ति के लिए, अपने क्षेत्र का विकास करना ,जनता की सेवा करना, जनहित के मुद्दों को उठाकर जनता को सुविधा दिलवाना, यह सब कुछ भी नहीं आता। अगर आता है,,, तो सिर्फ और सिर्फ,,, बहुत अधिक पैसा कमाना,,, यही उद्देश्य राजनीति में रह गया है? यही वजह है कि कभी मामूली सी हैसियत रखने वाले राजनेता,, राजनीति में आकर,सत्ता पा कर आज अकूत संपत्ति के मालिक बनकर बैठे हैं? उन्हें तो सत्ता सौंप कर जनता आज भी विकास कार्यों की आस लगाए हुए बैठी है? पार्टियों को चंदा देकर , टिकट लेकर विजई हो कर सत्ता पाने वाले उम्मीदवार ,स्वतंत्र नहीं रह पाते? उनकी लगाम सदा दूसरो के हाथो में होती है? वे गुलाम बन कर,साथ रहते हैं। यह बैतूल संसदीय क्षेत्र की बहुत बड़ी विडंबना है, जो आज भी चली आ रही है? स्वर्गीय विजय खंडेलवाल (मुन्नी भैया) के बाद से बैतूल जिले को शायद ही ऐसा सांसद मिला हो ,जो निष्पक्ष और स्वतंत्र सांसद हो ? और जनता के दुःख दर्दों को समझता हो ,तथा जनता के काम करवाने की दूरदर्शिता रखता हो? पूर्व में महिला सांसद होने के बाद से आज तक, भी बैतूल हरदा संसदीय क्षेत्र में , ऐसा सांसद नहीं आया,, जो स्वतंत्र हो, और पार्टी पर हावी होकर जनता के काम करने की पात्रता रखता हो। पूर्व की महिला सांसद से लेकर अब तक के समय काल में, बैतूल जिला विकास कार्य से वंचित ही कहा जा सकता है। इनका सारा कार्यकाल, जीतने के बाद, जनता से स्वागत करवाने ,तथा आयोजनों के मुख्य अतिथि बनने में ही गुजर जाता है। यही कारण है कि, समस्त बैतूल जिले की जनता , विगत 20 वर्षों से विकास कार्यों की बाट जोह रही है। धार्मिकता की प्रबल लहर में ,आरोग्य और नकारा व्यक्ति भी , पार्टी के नाम से राजनेता बनते जा रहा है? यह कहने में अतिशयोक्ति नहीं होगी कि धार्मिकता की लहर के कारण ही, पार्टियों के नाम पर जनप्रतिनिधि आसानी से बनते चले जा रहे हैं। देश में जब धार्मिकता के नाम पर ही विजय मिल रही है,, तो विकास कार्य करवाने की क्या जरूरत है,,? इसी तर्ज पर पूरे देश में धार्मिकता की लहर दिनों दिन बढ़ाई जा रही है ? इसके पीछे केवल और केवल सत्ता हासिल करने की नियत मात्र है?
इसीलिए सत्ताधारी पक्ष के लोग, नाम के लिए माथे पर टीका लगाकर, गले में भगवा गमछा पहन कर ,धार्मिकता तथा एक पार्टी विशेष के व्यक्ति होने का प्रबल दावा ऐसे कर रहे हैं,जैसे कि कोई, शूरवीर अपने देश के खातिर,दुश्मनों से ,सैकड़ो जंग जीत कर , उनको वीरता के लिए दिए जाने वाले अपने मैडलो को सीने पर लगाकर गर्व से घूमता हो? हाला की धार्मिकता , किसी भी देश की बुनियादी कामयाबी और सफलता बिल्कुल भी नहीं हो सकती ,,? परंतु वर्तमान में ऐसा ही दस्तूर चल निकला है? लुप्त धार्मिकता को इतना अधिक उत्तेजित किया जा रहा है ,,इसके आगे रोजगार, शिक्षा, चिकित्सा ,नौकरी, आर्थिक विकास की मांग, करना देश के नौजवान भूल चुके हैं, और धार्मिकता की प्रचंड आग में ही झुलस कर, लिख पढ़ कर, धार्मिक झंडिया, बैनर, और झंडे उठाने का काम करना पड़ रहा है? ऐसा लगता है कि ,देश अब दूसरे रास्ते पर जा रहा है,,?
*एक राजनीतिक समीक्षा*
*लेखक सैय्यद हमीद अली. वरिष्ठ पत्रकार मुलताई*.