डाक्टरेट (PHD) करने वाले कला/समाज शास्त्र /इतिहास के छात्रों के लिए ‘’भारतीय रेलवे एवं रेलवेमेंस’’ से जुड़े विभिन्न विषय भी विचारणीय हो सकते हैं

(दिलीप चौकीकर संवाददाता आमला)

डक्टरेट (PHD) करने वाले कला/समाज शास्त्र /इतिहास के छात्रों(विशेष कर जो रेल परिवार से हों) के लिए ‘’भारतीय रेलवे एवं रेलवेमेंस’’ से जुड़े विभिन्न विषय तथा रेलवे में कार्यरत या पूर्व में कार्यरत रहे उनके परिजनों से श्रेष्ठ अन्य कोई हीरो/आदर्श/रोल-माडल नहीं हो सकता ॥*

             *आस्ट्रेलिया निवासी डॉ. डेबोरॉह निक्सन जब यूनिवर्सिटी आफ टेक्नोलॉजी, सिडनी से डाक्टरेट करने के लिए विषय ढूँढ रहे थे तो काफ़ी चिंतन के बाद ‘’तस्वीरें, रेलवे, विभाजन – पूर्वराज में अधिवासित यूरोपीय लोग’’ विषय को चुना । डॉ. निक्सन के एंग्लो-इंडियन पिता श्री लेस्ली निक्सन आज़ादी पूर्व ग्रेट इंडियन पेनेन्सुएला रेलवे में लोकों फोरमेन के पद पर कार्यरत रहे थे एवं उनकी पिछली तीन-चार पीढ़ियाँ भी भारत में ही रहीं थीं । लोकोफोरमेन के रूप में उन्होंने कटनी, जबलपुर, भुसावल, कल्याण इत्यादि स्टेशनों पर कार्य किया था।अपने पिता को रिसर्च पेपर की कहानी का मुख्य हीरो मानने वाले डॉ. डेबोरॉह निक्सन ने डाक्टरेट संबंधी थीसिस को तैयार करने के लिए जुटाये गये दुर्लभ फ़ोटोग्राफ़्स एवं अन्य क्षेत्रों के अलावा रेलवे को मुख्य आधार बनाया, जो आज़ादी के बाद भारत में ही विभिन्न शहरों में बस चुके बुजुर्ग ऐंगलो इंडियन से साक्षात्कार के दौरान पुरानी यादों को स्मरण कराने में उत्प्रेरक का कार्य कर रहे थे । भारत भ्रमण के दौरान डॉ. डेबोरॉह को भारतीय संस्कृति से रूबरू होने का भी सौभाग्य प्राप्त हुआ ।*

       *भारतीय रेल के इतिहास में रुचि रखने वालों के लिए डॉ. डेबोराह निक्सन के ऐतिहासिक फ़ोटोग्राफ़्स को समेटे रिसर्च पेपर कई नई जानकारी प्रदान करने के अलावा इस क्षेत्र में रिसर्च करने में रुचि रखने वालों को मार्गदर्शन भी दे सकते हैं, जिन्हें इंटरनेट पर जाकर देखा एवं पढ़ा जा सकता है ।*

          वीरेंद्र कुमार पालीवाल

स्टेशन प्रबंधक बैतूल (मध्य रेल)

Satish Naik

Editor in Chief

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